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सोमवार, 19 जनवरी 2009

ज्ञायक ही कारण परमात्मा है



विकारीपन (विकारत्व) तो आत्मा में नहीं किंतु अल्पज्ञता भी वास्तव में आत्मा में नही ..., पहली ही चोट में सिद्धत्व की स्थापना जो करेगा उसको ही सम्यक दर्शन होता है | आत्मा तो त्रिकाली ध्रुवस्वभाव परम पारनामिक भावः ही आत्मा है . संवर निर्जरा मोक्ष पर्याय में भी आत्मा नहीं उपादेय नहीं उपादेय तो कारण परमात्मा ही है ||  
जिसको दुःख का नाश करना हो उसको प्रथम क्या करना ? पर तरफ के विकल्पों को छोड़कर , राग का प्रेम तोड़कर उपयोग(ज्ञान) को अन्दर जोड़ना ...!!!! तीन लोक के नाथ सर्वज्ञ के पास भी हित की कामना रखना यह भी भ्रम है | शुभ अशुभ भाव का प्रसंग आवे तो भी उससे भिन्न रहकर " मैं तो ज्ञाता ही हूँ " |  
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी

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