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शनिवार, 17 जनवरी 2009

भगवान् स्वरुप



जैसे अरिहंत और सिद्ध भगवान् हैं ऐसा ही मैं हूँ , ऐसी दो की समानता शुद्ध-अस्तित्व का विश्वास के जोर है !! प्रभु मेरे तुम सब बातें ही पूरा पर की आस करे क्या प्रीतम ! तू किस बात अधूरा ...!!

सिद्ध भगवान् जानने वाले देखने वाले हैं ऐसे ही तुम भी जानने वाले देखने वाले हो ! पूरे अधूरे का प्रश्न ही कहाँ है ! अपने जानने वाले देखने वाले स्वरुप से खिसक कर जो तुम कर्तत्व में ही रुक गए हो इसलिए ही सिद्ध भगवान् से अलग हो !

पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी

गुरुवार, 15 जनवरी 2009

मैं ही परमात्मा हूँ



सब परिणमन श्रेणीबद्ध है , इसलिए तुम तो मात्र जानने वाले हो पूर्ण जाननहार इसमें विकार और अपूर्णता क्या ? ! एक रूप परिपूर्ण ही हो ! ........ परिपूर्ण परमात्मा हो !!!!!
मैं ही परमात्मा हूँ ऐसा स्वीकार कर !

राग की क्रिया करने वाले क्या वो तुम हो ? अज्ञान- और राग का कर्तत्व अपने को सौपना ही अज्ञान- और मिथ्या भ्रम है ...! " सर्वोत्कृष्ट ही परमात्मा कहा जाता है और वह तो तुम स्वंय ही हो " !!! मैं ही परमात्मा हूँ ऐसा स्वीकार कर !  
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी

बुधवार, 14 जनवरी 2009

भगवान् आत्मा




अनंत सिद्धों को तेरी पर्याय में स्थापित किया है , अब तेरा चार गति में रुलना नहीं रहेगा ,अब तुम अल्पज्ञ भी नहीं रह सकोगे अपने सर्वज्ञ स्वभाव से ही तुम सर्वज्ञ हो जाओगे |  


सभी जीव साधर्मी हैं विरोधी कोई नहीं सर्व जीव पूर्णानंद को प्राप्त हो ! कोई जीव अपूर्ण ना रहो कोई जीव विपरीत दृष्टिवंत ना रहो !  
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी

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