૧
1
૧
૦૭-૦૬-૧૯૭૮
બુધવાર જ્યેષ્ઠ સુદ ૨વિ. સં. ૨૦૩૪
1A
ગુજરાતી
સાંભળો ડાઉનલોડ
૨
2
૧
૨
૦૮-૦૬-૧૯૭૮
ગુરૂવાર જ્યેષ્ઠ સુદ ૩વિ. સં. ૨૦૩૪
1A
ગુજરાતી
સાંભળો ડાઉનલોડ
૩
3
૨
૦૯-૦૬-૧૯૭૮
શુક્રવાર જ્યેષ્ઠ સુદ ૪વિ. સં. ૨૦૩૪
1A
ગુજરાતી
સાંભળો ડાઉનલોડ
૪
4
૩
૧૦-૦૬-૧૯૭૮
શનિવાર જ્યેષ્ઠ સુદ ૫વિ. સં. ૨૦૩૪
1A
ગુજરાતી
સાંભળો ડાઉનલોડ
૫
5
૧
૧૧-૦૬-૧૯૭૮
રવિવાર જ્યેષ્ઠ સુદ ૫વિ. સં. ૨૦૩૪
1A
ગુજરાતી
સાંભળો ડાઉનલોડ
૬
6
૧
૧૨-૦૬-૧૯૭૮
સોમવાર જ્યેષ્ઠ સુદ ૬વિ. સં. ૨૦૩૪
1A
ગુજરાતી
સાંભળો
गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010
मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009
मैं स्वयं महिमावंत हूँ|

बाहर की महिमा छोड़ ;वहाँ क्या है ? इसलिए पर की महिमा और आकर्षण छोड़कर एक बार परम ब्रह्म प्रभु निज आत्मा की महिमा लाकर अपने ज्ञान उपयोग को वहाँ जोड़ दे तो तेरी चार गति का भ्रमण मिट जायेगा
प्रथम तो मैं ज़रा भी पर का (अन्य का) नहीं और अन्य भी मेरा तनिक भी नहीं कारण कि सब ही द्रव्य तत्वत: पर के साथ समस्त सम्बन्ध से रहित है ; इसलिए इस षट द्रव्यात्मक विश्व में मेरी निज आत्मा से अन्य कोई भी मेरा नहीं
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी
प्रथम तो मैं ज़रा भी पर का (अन्य का) नहीं और अन्य भी मेरा तनिक भी नहीं कारण कि सब ही द्रव्य तत्वत: पर के साथ समस्त सम्बन्ध से रहित है ; इसलिए इस षट द्रव्यात्मक विश्व में मेरी निज आत्मा से अन्य कोई भी मेरा नहीं
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी
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रविवार, 15 फ़रवरी 2009
स्वाधीनता ही सुख है

पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी
मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009
मंगलवार, 27 जनवरी 2009
होता स्वयं जगत परिणाम
क्रमबद्ध को मानते ही फेरफार (बदलाव) करने की दृष्टि छूट जाती हैं सामान्य द्रव्य पर दृष्टि जाती ही है , यही पुरुषार्थ है ....! करने फरने का है ही कहाँ ? करुँ करुँ की दृष्टी ही छोडनी है और अपने ज्ञायक भाव से जोड़नी है | मनुष्य भव में यही एक काम करने योग्य है ......!!!! पर द्रव्य का तो कुछ करने की बात ही नहीं किंतु स्वयं की असुद्ध और शुद्ध पर्यायें भी स्वकाल में क्रमबद्ध जो होने योग्य हो वोही होती हैं | इसलिए स्वयं में भी पर्याय को बदलने का रहता नहीं ...! मात्र जैसी होती हैं वैसी जानने का ही रहा ...!!!! वास्तव में तो उस समय में हुई वह पर्याय अपने षट्कारक से स्वतंत्र परिणामित हुई है | पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी
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शुक्रवार, 23 जनवरी 2009
मैं जानने वाला हूँ
विकृत (विपरीत) भावः से अपने को भेद ज्ञान द्वारा भिन्न अनुभवना बस यह ही करना योग्य है बाकी तो सब पर वस्तु भिन्न ही हैं ..!
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी
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बुधवार, 21 जनवरी 2009
परिणाम - परिणाम स्वतंत्र और क्रमबद्ध है

निर्मल परिणाम हो अथवा कि मलिन परिणाम वह उसके स्वकाल में ही होता है , वह परिणाम के उत्पन्न होने का जन्मक्षण है | वास्तव में जो कुछ भी होता है उसके तुम जानने वाले हो करने वाले नहीं अत: ऐसा कैसे और क्यों होता है ? इसका प्रश्न ही कहाँ है ...!!
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी
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