मंगलवार, 27 जनवरी 2009
होता स्वयं जगत परिणाम
क्रमबद्ध को मानते ही फेरफार (बदलाव) करने की दृष्टि छूट जाती हैं सामान्य द्रव्य पर दृष्टि जाती ही है , यही पुरुषार्थ है ....! करने फरने का है ही कहाँ ? करुँ करुँ की दृष्टी ही छोडनी है और अपने ज्ञायक भाव से जोड़नी है | मनुष्य भव में यही एक काम करने योग्य है ......!!!! पर द्रव्य का तो कुछ करने की बात ही नहीं किंतु स्वयं की असुद्ध और शुद्ध पर्यायें भी स्वकाल में क्रमबद्ध जो होने योग्य हो वोही होती हैं | इसलिए स्वयं में भी पर्याय को बदलने का रहता नहीं ...! मात्र जैसी होती हैं वैसी जानने का ही रहा ...!!!! वास्तव में तो उस समय में हुई वह पर्याय अपने षट्कारक से स्वतंत्र परिणामित हुई है | पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी
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शुक्रवार, 23 जनवरी 2009
मैं जानने वाला हूँ
विकृत (विपरीत) भावः से अपने को भेद ज्ञान द्वारा भिन्न अनुभवना बस यह ही करना योग्य है बाकी तो सब पर वस्तु भिन्न ही हैं ..!
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी
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बुधवार, 21 जनवरी 2009
परिणाम - परिणाम स्वतंत्र और क्रमबद्ध है

निर्मल परिणाम हो अथवा कि मलिन परिणाम वह उसके स्वकाल में ही होता है , वह परिणाम के उत्पन्न होने का जन्मक्षण है | वास्तव में जो कुछ भी होता है उसके तुम जानने वाले हो करने वाले नहीं अत: ऐसा कैसे और क्यों होता है ? इसका प्रश्न ही कहाँ है ...!!
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी
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मंगलवार, 20 जनवरी 2009
आत्मा और शरीर अत्यन्त भिन्न हैं
भगवान् आत्मा केवलज्ञान की मूर्ती है और यह शरीर तो जड़ -धूल है मिट्टी है शरीर को आत्मा का स्पर्श ही कहाँ है !!
पूज्य गुरुदेव कानजी स्वामी
सोमवार, 19 जनवरी 2009
ज्ञायक ही कारण परमात्मा है

जिसको दुःख का नाश करना हो उसको प्रथम क्या करना ? पर तरफ के विकल्पों को छोड़कर , राग का प्रेम तोड़कर उपयोग(ज्ञान) को अन्दर जोड़ना ...!!!! तीन लोक के नाथ सर्वज्ञ के पास भी हित की कामना रखना यह भी भ्रम है | शुभ अशुभ भाव का प्रसंग आवे तो भी उससे भिन्न रहकर " मैं तो ज्ञाता ही हूँ " |
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी
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शनिवार, 17 जनवरी 2009
भगवान् स्वरुप

जैसे अरिहंत और सिद्ध भगवान् हैं ऐसा ही मैं हूँ , ऐसी दो की समानता शुद्ध-अस्तित्व का विश्वास के जोर है !! प्रभु मेरे तुम सब बातें ही पूरा पर की आस करे क्या प्रीतम ! तू किस बात अधूरा ...!!
सिद्ध भगवान् जानने वाले देखने वाले हैं ऐसे ही तुम भी जानने वाले देखने वाले हो ! पूरे अधूरे का प्रश्न ही कहाँ है ! अपने जानने वाले देखने वाले स्वरुप से खिसक कर जो तुम कर्तत्व में ही रुक गए हो इसलिए ही सिद्ध भगवान् से अलग हो !
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी
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गुरुवार, 15 जनवरी 2009
मैं ही परमात्मा हूँ
राग की क्रिया करने वाले क्या वो तुम हो ? अज्ञान- और राग का कर्तत्व अपने को सौपना ही अज्ञान- और मिथ्या भ्रम है ...! " सर्वोत्कृष्ट ही परमात्मा कहा जाता है और वह तो तुम स्वंय ही हो " !!! मैं ही परमात्मा हूँ ऐसा स्वीकार कर !
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी
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बुधवार, 14 जनवरी 2009
भगवान् आत्मा

अनंत सिद्धों को तेरी पर्याय में स्थापित किया है , अब तेरा चार गति में रुलना नहीं रहेगा ,अब तुम अल्पज्ञ भी नहीं रह सकोगे अपने सर्वज्ञ स्वभाव से ही तुम सर्वज्ञ हो जाओगे |
सभी जीव साधर्मी हैं विरोधी कोई नहीं सर्व जीव पूर्णानंद को प्राप्त हो ! कोई जीव अपूर्ण ना रहो कोई जीव विपरीत दृष्टिवंत ना रहो !
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी
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मंगलवार, 13 जनवरी 2009
स्वभाव का लक्ष्य ही आदरणीय है

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सोमवार, 12 जनवरी 2009
जिन स्वरूपी प्रभु हो तुम
जो जिनेन्द्र है वैसा ही मैं हूँ ऐसा मनन करो ; अरे.. रे.. रे.. मैं अल्पज्ञ हूँ मेरे में ऐसी कोई ताकत होती होगी ?? ये बात रहने दे भाई !! मैं पूर्ण परमात्मा होने लायक हूँ --- ऐसा भी नहीं किंतु मैं तो पूर्ण परमात्मा अभी ही हूँ ऐसा मनन करो !! आहा .. हां... ! पूज्य गुरुदेव कानजी स्वामी
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