शनिवार, 17 जनवरी 2009

भगवान् स्वरुप



जैसे अरिहंत और सिद्ध भगवान् हैं ऐसा ही मैं हूँ , ऐसी दो की समानता शुद्ध-अस्तित्व का विश्वास के जोर है !! प्रभु मेरे तुम सब बातें ही पूरा पर की आस करे क्या प्रीतम ! तू किस बात अधूरा ...!!

सिद्ध भगवान् जानने वाले देखने वाले हैं ऐसे ही तुम भी जानने वाले देखने वाले हो ! पूरे अधूरे का प्रश्न ही कहाँ है ! अपने जानने वाले देखने वाले स्वरुप से खिसक कर जो तुम कर्तत्व में ही रुक गए हो इसलिए ही सिद्ध भगवान् से अलग हो !

पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी

6 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत अच्‍छा।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया,

निर्मला कपिला ने कहा…

bahut bhav pooran sunder hai

Dev ने कहा…

सिद्ध भगवान् जानने वाले देखने वाले हैं ऐसे ही तुम भी जानने वाले देखने वाले हो ! पूरे अधूरे का प्रश्न ही कहाँ है !

Aapne bahut achchhi shuruaat ki hai...

Regards...

Manuj Mehta ने कहा…

वाह बहुत खूब. आपके ब्लॉग पर आने पर हर बार एक नया अनुभव होता है. आपकी लेखनी यूँ ही जादू बिखेरती रहे.

seema gupta ने कहा…

प्रभु मेरे तुम सब बातें ही पूरा पर की आस करे क्या प्रीतम ! तू किस बात अधूरा ...!!
" wah bhut sundr or sarthk.."

Regards

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